Sunday 16 July 2017

बंगाल सांप्रदायिक हिंसा : तुष्टीकरण की राजनीति ने लोगों को बांट दिया है


आज बदुरिया में जो हो रहा है वो तुष्टीकरण की नीतियों का ही नतीजा है . . .

बदुरिया आज बांग्लादेश का ही हिस्सा लग रहा है। स्थानीय लोग अपने ही क्षेत्र में अजनबी हो गए हैं। पुलिस अब लडकियों से छेडखानी की शिकायत तक नहीं सुनती ! ३ जुलाई को जो हिंसा भडकी वो तो बस एक बहाना थी। असल में घुसपैठिये यहां बचे हुए पुराने लोगों को ये इलाका छोडकर भाग जाने की धमकी दे रहे हैं !
पश्चिम बंगाल में तकी रोड पर जब आप कोलकाता से बांग्लादेश सीमा पर घोजाडांगा पोस्ट की आेर बढते हैं, तो इस व्यस्त हाइवे पर लगभग ५० किलोमीटर चलकर बेराचंपा से एक दोराहा आता है। बाएं की ओर १४ किलोमीटर आगे चलते हुए आप बदुरिया कस्बे पहुंच जाते हैं।
बदुरिया की जनसंख्या लगभग ढाई लाख है। हाल ही में यहां हुए सांप्रदायिक दंगों की वजह से इसकी चर्चा हो रही है। बदुरिया की हिंसा का असर न केवल पूरे देश के सांप्रदायिक माहौल को बिगाड सकता है, बल्कि ये मामला देश की सुरक्षा से भी जुडा है !
आज से १६ वर्ष पहले बदुरिया आने पर मैंने देखा था कि, ये जगह एकदम शांत हुआ करती थी। जीवन की रफ्तार सुस्त थी। उस समय तकी रो़ड पर भी इतना ट्रैफिक नहीं हुआ करता था। हम अपनी दोपहिया गाडी पर भी आराम से चलते हुए बदुरिया पहुंचे थे।
हालांकि उस समय भी बदुरिया में शांत माहौल में आनेवाले तूफान के संकेत दिख रहे थे। जब १६ वर्ष पहले हम यहां आए थे, तो रमजान का महीना चल रहा था। नमाज के लिए हाइवे को बंद कर दिया गया था। हमें नमाज और इफ्तार पूरे होने तक हाइवे के किनारे स्थित एक चाय की दुकान पर रुकना पडा था।
थोडी देर में यह दुकान खचाखच भर गई थी। आमतौर पर देहली की सियासी इफ्तारों से अलग हमारे सुदूर गांव-कस्बों की इफ्तार शांत और सादी होती हैं। परंतु यहां रोजेदारों के लिबास और बोली दोनों ही साफ बताती थी कि, वे हिंदुस्तानी नहीं हैं !
बदुरिया में हमारे मेजबान ने हमारे शक पर मुहर लगा दी थी। वे लोग खुद बदुरिया के बदलते माहौल से परेशान थे। अपने ही क्षेत्र में वो अजनबी हो चुके थे। अवैध घुसपैठ के चलते बडी तादाद में बांग्लादेशी बदुरिया में आकर बस रहे थे। उस समय पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चे की सरकार थी। वामपंथी सरकार ने इस घुसपैठ की आेर से आंखें बंद की हुई थीं। वो बांग्लादेश से आए इन घुसपैठियों को वोटबैंक के तौर पर उपयोग कर रहे थे।
उस समय बदुरिया के लोग ममता बनर्जी को बडी उम्मीद की नजर से देखते थे। उन्हें लगता था कि ममता की सरकार बनी तो वो बांग्लादेशी घुसपैठियों पर लगाम लगाएंगी। उन्हें लगता था कि ममता के सत्ता में आने पर प्रशासन बेहतर होगा। हिंदू-मुसलमान के नाम पर भेदभाव नहीं होगा।
आज १६ वर्ष बाद बदुरिया के लोगों की उम्मीदें टूट चुकी हैं। आज ये क्षेत्र जंग का मैदान बन चुका है। १७ वर्ष के एक लडके की जिस फेसबुक पोस्ट की वजह से यहां पिछले सप्ताह जबरदस्त हिंसा हुई, वो तो बस बहाना थी। इस बार हमारे मेजबान बताते हैं कि जब हिंसा भडकी तो उन्हें बहुत डर लगा। इसीलिए वो बाकी देशवासियों को यहां के हालात के बारे में बताने को बेताब थे। उन्हें डर लग रहा था कि अगर कुछ किया न गया तो यहां बडा ‘हत्याकांड’ हो सकता है !

हालात बेहद खराब

स्थानीय लोग कहते हैं कि आज की तारीख में बदुरिया में हालात बेहद बिगड चुके हैं। यहां के ६५ प्रतिशत वोटर मुसलमान हैं। यहां पर सबसे ज्यादा जो इमारतें बन रही हैं वो मदरसे और मस्जिद हैं !
बदुरिया आज बांग्लादेश का ही हिस्सा लग रहा है। स्थानीय लोग अपने ही क्षेत्र में अजनबी हो गए हैं। पुलिस अब लडकियों से छेडखानी की शिकायत तक नहीं सुनती ! ३ जुलाई को जो हिंसा भडकी वो तो बस एक बहाना थी। असल में घुसपैठिये यहां बचे हुए पुराने लोगों को ये इलाका छोडकर भाग जाने की धमकी दे रहे हैं !
आज ये हालात ममता बनर्जी की मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति के कारण से उत्पन्न हुए हैं। यहां के ज्यादातर लोग भारतीय नागरिक तक नहीं हैं ! दंगाइयों और हिंसा भडकानेवालों (जो फेसबुक पोस्ट लिखने के आरोपी लडके को फांसी पर लटकाने की मांग कर रहे थे) के प्रति नरमी दिखाकर ममता ने साफ कर दिया है कि वो सांप्रदायिक ताकतों के आगे झुक गई हैं। तभी तो उन्होंने यहां तीन दिन तक दंगाइयों को खुली छूट दे रखी थी और सुरक्षाबलों को उनसे निपटने से रोक रही थीं !
जब ममता बनर्जी को दंगाइयों से सख्ती से निपटना चाहिए था। जब उनकी जिम्मेदारी थी कि वो सांप्रदयिक ताकतों के विरोध में कडे कदम उठातीं, तो वो केंद्र सरकार से झगडा करने लगीं। मदद के लिए भेजी गई सुरक्षा बलों की टुकडियों को लौटा दिया। इसके बाद वो राज्यपाल पर आरोप लगाने लगीं !
ममता ने उन्हें भाजपा का सडकछाप नेता कह दिया और उन पर अपमानित करने का आरोप भी लगाने लगीं। इससे ममता बनर्जी की नीयत साफ हो गई। जाहिर है कि उनकी ये सियासी नौटंकी कानून-व्यवस्था को लेकर अपनी नाकामी छुपाने के लिए ही थी। कानून का राज कायम करने के मोर्चे पर ममता बनर्जी बुरी तरह फेल हुई हैं !
इस हिंसा को राज्यपाल की ओर से ‘हस्तक्षेप’ की उपज बताने के उनके दांव को भले ही उनके समर्थक मान लें, परंतु इससे तो सांप्रदायिक ताकतों के हौसले बुलंद ही होंगे ! राज्य के दूसरे हिस्सों में भी दंगाइयों को ममता के रवैये से हौसला मिलेगा। बदुरिया में शरीयत के तहत सजा की मांग, केवल बंगाल ही नहीं, पूरे देश के लिए खतरे की घंटी है !
धर्म के नाम पर कत्ल करने पर उतारू भीड को सजा न मिलने से एक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक देश होने के हमारे दावे पर दाग लगना तय है। किसी भी भीड का हिंसक तरीकों से अपनी मांग मंगवाना जायज नहीं। लोगों को कानून से खिलवाड की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए !

मीडिया पर भी सवाल

पश्चिम बंगाल की ताजा सांप्रदायिक हिंसा को लेकर वहां के मीडिया के रोल पर भी सवाल उठे हैं। सरकार के दबाव में या फिर चापलूसी की नीति के चलते किसी भी बडे मीडिया हाउस ने बदुरिया की हिंसा की घटना को प्रसिद्धि नहीं दी !
यूं लग रहा था कि मीडिया की इस शुतुरमुर्गी नीति से हालात खुद-ब-खुद ठीक हो जाएंगे। मगर ये उसी मीडिया की खामोशी थी, जो हाल के दिनों में देश के दूसरे हिस्सों में पीट-पीटकर हुई हत्याओं की घटनाओं पर खूब शोर मचा रहा था। गौरक्षकों की हिंसा को लेकर यही मीडिया छाती पीट रहा था। पश्चिम बंगाल के मीडिया को समझना होगा कि अपराधियों से निपटने के दो पैमाने नहीं हो सकते। अगर वो गौरक्षकों की हिंसा को लेकर शोर मचा रहे थे, तो उन्हें बदुरिया की सांप्रदायिक हिंसा पर भी आवाज उठानी चाहिए थी !
पाकिस्तान की तरह भारत अच्छे और बुरे आतंकवादी यानी अच्छे और बुरे दंगाइयों का फर्क नहीं कर सकता !
सवाल ये है कि, पश्चिम बंगाल में कालियाचक, धूलागढ़ और अब बदुरिया की सांप्रदायिक हिंसा क्या संकेत देती है ? पश्चिम बंगाल के बिगडते सांप्रदायिक माहौल के लिए यूं तो केवल ममता को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। मगर मौजूदा सरकार होने की वजह से सबसे ज्यादा जवाबदेही उन्हीं की बनती है। इससे वो अपनी नौटंकीवाली सियासत करके पल्ला नहीं झाड सकतीं !
पूरे देश को मालूम है कि, वोट बैंक की राजनीति के चलते पश्चिम बंगाल में वामपंथी सरकारों ने बांग्लादेश के अवैध घुसपैठियों की आेर से आंखें मूंदे रखीं। उस दौर में भारत-बांग्लादेश की सीमा पर जानवरों के बदले इंसानों की अदला-बदली का कारोबार आम था। सीमा की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार एजेंसियां ये अवैध कारोबार रोकने में नाकाम रहीं !
इससे ही साफ है कि, हम देश की सुरक्षा को लेकर कितने गंभीर हैं ! हमारी नाकामी की सबसे बडी मिवर्ष यही है कि हमें यही नहीं पता कि बांग्लादेश से कितने लोगों ने अवैध तरीके से हिंदुस्तान में घुसपैठ की। आज हालात ये हैं कि खुद बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने चेताया है कि बांग्लादेश से आतंकी पश्चिम बंगाल में घुसकर पनाह ले रहे हैं। परंतु ममता ने शेख हसीना की चेतावनी को भी अनसुना कर दिया !
कोई भी सरकार जिसकी हालत पर नजर हो, जो देश की सुरक्षा को लेकर गंभीर हो, वो घुसपैठ को लेकर बेहद सतर्क होगी। परंतु पश्चिम बंगाल में ऐसा नहीं हुआ। घुसपैठियों की तादाद बढ़ती रही। मुसलमानों की जनसंख्या पश्चिम बंगाल में जितनी तेजी से बढ़ी है, उतनी तेजी से देश के किसी भी हिस्से में नहीं बढ़ी। फिर भी वहां की सरकारें सोई रहीं !

क्या है इस हिंसा की जड में ?

आज पश्चिम बंगाल में मुस्लिम जनसंख्या, आजादी से पहले के स्तर पर पहुंच रही है। १९४१ में पश्चिम बंगाल में २९ प्रतिशत मुसलमान जनसंख्या थी। आज ये आंकडा २७ प्रतिशत पहुंच गया है। जबकि देश के बंटवारे के बाद १९५१ में पश्चिम बंगाल में केवल १९.५ प्रतिशत मुसलमान थे। बंटवारे के बाद बडी तादाद में मुसलमान, पाकिस्तान चले गए थे।
हम मुसलमानों की जनसंख्या में बढोतरी के आंकडों पर गौर करें तो चौंकानेवाली बातें सामने आती हैं ! २००१ से २०११ के बीच पश्चिम बंगाल में मुस्लिम जनसंख्या १.७७ प्रतिशत सालाना की दर से बढ़ी। जबकि देश के बाकी हिस्सों में मुस्लिम जनसंख्या ०.८८ प्रतिशत की दर से बढ़ी !
यूं तो राजनीति में आंकडों की बहुत बात होती है। परंतु पश्चिम बंगाल की तेजी से बढ़ती मुस्लिम जनसंख्या की आेर से सब ने आंखें मूंद रखी थीं। सियासी फायदे के लिए देशहित की कुर्बानी दे दी गई। अगर हम आंकडों पर ध्यान देते तो फौरन बात पकड में आ जाती कि जिस बंगाल में कारोबार ठप पड रहा था, उद्योग बंद हो रहे थे, वहां लोग रोजगार की नीयत से तो जा नहीं रहे थे !
आज की तारीख में हम घुसपैठ के सियासी असर की बात करें तो, पश्चिम बंगाल के तीन जिलों में मुसलमान बहुमत में हैं। लगभग १०० विधानसभा सीटों के नतीजे मुसलमानों के वोट तय करते हैं। यानी मुस्लिम वोट, पश्चिम बंगाल की सियासत के लिहाज से आज बेहद अहम हो गए हैं। इसीलिए राज्य में ममता बनर्जी जमकर मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति कर रही हैं। उनसे पहले वामपंथी दल यही कर रहे थे !
तुष्टीकरण की गंदी सियासत का नमूना हमने २००७ के चुनावों में देखा था। उस समय अपनी तरक्कीपसंद राजनीति के बावजूद वामपंथी सरकार ने बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन को कोलकाता से बाहर जाने पर मजबूर किया। इसकी वजह ये थी कि बंगाल के कट्टरपंथी मुसलमान, तस्लीमा के शहर में रहने का विरोध कर रहे थे। आज का पश्चिम बंगाल सांप्रदायिक रूप से और भी संवेदनशील हो गया है !
ममता बनर्जी ने सांप्रदायिकता को अपना सबसे बडा सियासी हथियार बना लिया है। उनका आदर्शवाद सत्ता में रहते हुए उडन-छू हो चुका है। राज्य के २७ प्रतिशत मुस्लिम जनसंख्या को लुभाने के लिए ममता किसी भी हद तक जाने को तैयार दिखती हैं। इसीलिए वो नूर-उल-रहमान बरकती जैसे मौलवियों को शह देती हैं !
ये वही बरकती है जिसने पीएम मोदी के विरोध में फतवा दिया था। बरकती ने कई भडकाऊ बयान दिए। वो लालबत्ती पर रोक के बावजूद खुले तौर पर अपनी गाडी में लालबत्ती लगाकर चलता था। परंतु ममता ने उसके विरोध में कोई एक्शन नहीं लिया। बाद में कोलकाता की टीपू सुल्तान मस्जिद के ट्रस्टियों ने बरकती को इमाम पद से जबरदस्ती हटाया।
इसी तरह ममता बनर्जी ने मालदा के हरिश्चंद्रपुर कस्बे के मौलाना नासिर शेख की आेर से आंखें मूंद लीं। इस मौलाना ने टीवी, संगीत, फोटोग्राफी और गैर मुसलमानों से मुसलमानों के बात करने पर पाबंदी लगा दी थी। राज्य के धर्मनिरपेक्ष नियमों के विरोध में जाकर ममता ने इमामों और मौलवियों को उपाधियां और पुरस्कार दिए हैं !
ममता ने मुस्लिम तुष्टीकरण की सारी हदें तोड दी हैं ! तभी तो दुर्गा पूजा के बाद ४ बजे के बाद मूर्ति विसर्जन पर, मुहर्रम का जुलूस निकालने के लिए रोक लगा देती हैं। उन्हें आम बंगालियों की धार्मिक भावनाओं का खयाल तक नहीं आता। कलकत्ता उच्च न्यायालय ने ममता बनर्जी सरकार के इस फैसले को अल्पसंख्यकों का अंधा तुष्टीकरण कहा था !
क्या ममता बनर्जी को ये समझ में आएगा कि मुस्लिम तुष्टीकरण से बंगाल में अब काजी नजरुल इस्लाम जैसे लोग नहीं पैदा होगे। बल्कि इससे इमाम बरकती और नसीर शेख जैसे मौलवियों को ही ताकत मिलेगी ! ये वही लोग हैं जो मुसलमानों की नुमाइंदगी का दावा करते हैं, मगर उन्हीं के हितों को चोट पहुंचाते हैं। ये सांप्रदायिकता फैलाते हैं !
आज बदुरिया में जो हो रहा है वो तुष्टीकरण की नीतियों का ही नतीजा है। कल यही हाल कोलकाता का भी हो सकता है !
ममता बनर्जी सांप्रदायिकता की ऐसी आग से खेल रही हैं, जिस पर काबू पाना उनके बस में भी नहीं होगा !
स्त्रोत : फर्स्ट पोस्ट

Saturday 15 July 2017

भारत रक्षा मंच के मुरली मनोहर शर्माजी द्वारा व्यक्त बांग्लादेशी घुसपैठ की समस्या की वास्तविक भीषणता !


१४ जून को अखिल भारतीय हिन्दू अधिवेशन के सायंकाल के सत्र में मान्यवरोंद्वारा व्यक्त किए गए विचार

षष्ठ अखिल भारतीय हिन्दू अधिवेशन में भारत रक्षा मंच (ओडिशा) के राष्ट्रीय सह-संयोजक मुरली मनोहर शर्मा ने उपस्थित हिन्दुत्वनिष्ठों को उद्बोधित करते हुए कहा कि, आनेवाले समय में देश का प्रधानमंत्री कौन होगा, यह बांग्लादेशी घुसपैठिए निश्‍चित करेंगे !
१. देश में सर्वाधिक घुसपैठिए बांग्लादेशी हैं । उनके लिए नौकरी, पैन कार्ड, मतदान परिचय पत्र आदि अनेक सुविधाएं बनाकर देने में दलाल तत्काल तैयार रहते हैं । शासन की सर्व प्रकार की योजनाएं और सुविधाएं उनके लिए लागू की जाती हैं । इस प्रकार घुसपैठ करनेवाले केवल देश लूटने के लिए ही आए होते हैं ।
२. इसके विपरीत बांग्लादेशी हिन्दू देश में आश्रय के लिए आते समय वैध मार्ग से आता है; परंतु उसकी प्रविष्टी बांग्लादेश से आया हुआ की जाती है । इसलिए उसे देश की नागरिकता शीघ्र नहीं मिलती ।
३. अन्य देशों की तुलना में अपने देश में शरणार्थियों को सर्वाधिक सुविधाएं दी जाती हैं ।
४. आनेवाले काल में देश का प्रधानमंत्री कौन होगा, यह निर्णय बांग्लादेशी घुसपैठिए करेंगे, ऐसी भयावह स्थिति उत्पन्न होगी ।
५. देश में कितने बांग्लादेशी घुसपैठिए हैं, इसकी संख्या शासन भी नहीं दे सकता ।  ऐसे घुसपैठिए देशभर में फैले हुए हैं तथा उन्हें देश से भगाना सरल नहीं है । ६. यह समस्या बढ रही है तथा वह गंभीर है । कल वे अपना एक अलग देश मांग सकते हैं ।

अखिल भारतीय हिन्दू अधिवेशन के संबंध में श्री. मुरली मनोहर शर्माजी के  गौरवोद्गार

हिन्दू अधिवेशन का रूपांतरण वटवृक्ष में हो रहा है ! अखिल भारतीय हिन्दू अधिवेशन जब पहली बार आयोजित किया था, उस समय  ५ से अधिक राज्यों के हिन्दुत्वनिष्ठ संगठन सम्मिलित हुए थे । आज का अधिवेशन  देश-विदेश के १३२ से अधिक संगठनों ने एकत्रित आकर आयोजित किया है । इसके द्वारा अधिवेशन का रूपांतरण अब वटवृक्ष में हो रहा है । सनातन संस्था और हिन्दू  जनजागृति समिति सभी को एकत्रित कर हिन्दू राष्ट्र की दिशा में मार्गक्रमण कर रही है । अधिवेशन में आए हुए प्रत्येक को हिन्दू राष्ट्र लाने और उसका प्रसार करने का दायित्व निभाना पडेगा । प्रत्येक को हिन्दू ध्वज सात समुद्र पार जाकर फहराना है ।

उद्बोधन सत्र में पारित प्रस्ताव


केंद्रशासन देश में अवैध रूप से वास्तव्य करनेवाले बांग्लादेशी घुसपैठियों को उनके देश में लौटाने का कानून तत्काल बनाए ।
बांग्लादेश से प्रतिदिन भारत में आनेवाले बांग्लादेशी नागरिकों के लिए काम करने की अनुमति (वर्क परमिट) देनेवाला कानून संसद में पारित हो ।
दंगों के पश्‍चात पीडितों को हानिभरपाई देने के लिए नियुक्त की गई पूछताछ समिति में हिन्दुत्वनिष्ठों को भी सम्मिलित किया जाए ।
गत ५ वर्षों में हिन्दुआें के विरोध में हुए दंगों में पीडितों का पुनर्वसन, उन्हें दी जानेवाली सहायता राशि की योग्यता-अयोग्यता और उस पर हुई प्रत्यक्ष कार्यवाही की पूछताछ के लिए एक समिति नियुक्त की जाए । उस समिति की सिफारिशों के अनुसार दंगे पीडितों को सहायता राशि दी जाए ।
दंगों में जिन हिन्दुआें के घर नष्ट हो गए हों, उनका पुनर्वसन किया जाए ।
स्वतंत्रता के पश्‍चात आज तक हुए दंगों में मृत हुए मुसलमानों के लिए उनके परिजनों को दी गई सहायता राशि में जो सर्वाधिक सहायता राशि हो, उतनी ही राशि मृत हिन्दू के परिजनों को दी जाए ।  उपस्थित हिन्दुत्वनिष्ठों ने ये सभी प्रस्ताव ‘जयतु जयतु हिन्दुराष्ट्रम ।’ के  जयघोष में हाथ उठाकर पारित किए ।