‘दैनिक जागरण’ की एक विस्तृत खबर के अनुसार, इस साजिश में राजनीतिक लोगों के साथ-साथ कई NGO भी शामिल हैं। सुरक्षा एजेंसियों की नाक के नीचे इतना सब कुछ अंजाम दिया गया। बांग्लादेश के रास्ते रोहिंग्या मुस्लिमों की खेप कोलकाता पहुँचती रही है, जबकि अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मिजोरम और नागालैंड की सीमाएँ सीधे म्यांमार से लगती हैं। पता चला है कि उन्हें मालदा लाकर वहाँ से जम्मू भेजा जा रहा था।
इन सब चीजों के तार दिल्ली से भी जुड़ते हैं, जहाँ संयुक्त राष्ट्र से सम्बद्ध संस्था द्वारा इन रोहिंग्या मुस्लिमों का पंजीकरण किया जाता है। ये संस्थाएँ ‘शरणार्थियों की मदद’ के नाम पर दिल्ली से लेकर कोलकाता तक सक्रिय रहती हैं। इन तत्वों द्वारा रोहिंग्या मुस्लिमों को विश्वास दिलाया जाता है कि जम्मू कश्मीर एक मुस्लिम बहुल इलाका है, जहाँ उन्हें कोई दिक्कत नहीं आएगी। वहाँ उन्हें इस्लाम प्रैक्टिस करने से कोई नहीं रोकेगा।
ये NGO और इस्लामी संस्थाएँ रोहिंग्या मुस्लिमों को जम्मू पहुँचाती थीं और उनकी यात्रा से लेकर रहने और खाने-पीने तक की व्यवस्था का पूरा जिम्मा उठाती थीं। जम्मू, सांबा और बाड़ी ब्राह्मणा में इनके लोग पहले से मौजूद रहते थे, जो मस्जिदों और मदरसों में इनके रहने का बंदोबस्त करते थे। फिर उन्हें झुग्गियों में बसा दिया जाता था। खास बात ये है कि उन्हें उन्हीं क्षेत्रों में बसाया जा रहा था, जहाँ मुस्लिमों की जनसंख्या कम है।साथ ही उन्हें जम्मू कश्मीर में चल रहे ‘जिहाद’ और म्यांमार में ‘बौद्धों के अत्याचार’ को जोड़ कर और कट्टर बनाया जाता है। उनसे कट्टर बातें कर के जिहादी तत्वों के लिए काम करने के लिए तैयार किया जाता था। पाकिस्तान के साथ जम्मू कश्मीर के सटे होने का उन्हें दोहरा फायदा मिलता था। उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल और बांग्लादेश के मुस्लिम जम्मू में पहले से बसे हुए हैं, इसीलिए किसी को शक नहीं होता था।
जब भी इस पर कोई आवाज़ उठती थी तो इनकी मददगार संस्थाएँ उन्हें पीड़ित बताते हुए अपने खेल शुरू कर देती थीं। नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी, अवामी इत्तेहाद पार्टी और कॉन्ग्रेस ने रोहिंग्या मुस्लिमों को अपने वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया। भले ही उन्हें वोट का अधिकार न हो, लेकिन उन्हें संरक्षण देकर मुस्लिम समाज को खुश किया जाता था और उनके खिलाफ कार्रवाई न कर के तुष्टिकरण की राजनीति की जाती थी।
जम्मू कश्मीर की अंतिम मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने अपने कार्यकाल में कहा था कि रोहिंग्या मुस्लिमों को लेकर केंद्र सरकार ही निर्णय ले सकती है। जमात-ए-इस्लामी कश्मीर जैसे कई संगठन इनके लिए काम कर रहे हैं और उनके नाम पर जुलूस निकालते रहे हैं, क्षेत्र में तनाव का माहौल बनाते रहे हैं। ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के एक गुट के अध्यक्ष मीरवाइज मौलवी उमर फारूक ने रोहिंग्या के लिए कश्मीर में सांत्वना दिवस का भी आयोजन किया था।
कुछ वर्षों पहले म्यांमारी आतंकी छोटा बर्मी को सुरक्षाबलों ने एक मुठभेड़ में मार गिराया था। पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी ISI भी जम्मू कश्मीर के ‘जिहादियों’ और म्यांमार के ‘रोहिंग्याओं’ के बीच सेतु का काम कर रही है। कोलकाता के मौलवी भी उन्हें जम्मू पहुँचाने में मदद करते हैं। जम्मू कश्मीर में उन्हें रोजगार भी आसानी से मिल जाता है। कई रोहिंग्याओं का कहना है कि वो बिना किसी जाँच के ट्रेन से यहाँ आराम से पहुँच जाते हैं।
आँकड़े कहते हैं कि जम्मू-कश्मीर में कुल 13600 विदेशी नागरिक अवैध रूप से रह रहे हैं। जिनमें सबसे ज्यादा संख्या रोहिंग्याओं और बांग्लादेशियों की है। जम्मू के बेली चराना और सांबा में भी इनकी बड़ी संख्या है। ड्रग्स रैकेट और आतंकी हमलों में इनका नाम सामने आता रहता है। जम्मू के बठिंडी में रोहिंग्याओं की संख्या बहुत ज्यादा है। अब वो स्थानीय आबादी में मिल गए हैं, जिससे उनकी पहचान खासी मुश्किल हो रही है।
हाल ही में जम्मू-कश्मीर में 155 ऐसे रोहिंग्या मिले थे, जो म्यांमार में अपनी सज़ा से बच कर यहाँ रह रहे थे। उन सभी को ‘होल्डिंग सेंटर’ भेज दिया गया है। पुलिस ने फॉरेनर्स एक्ट के अनुच्छेद-3(2)e के तहत ये कार्रवाई की। साथ ही पासपोर्ट एक्ट के अनुच्छेद-3 के तहत प्रवासियों के पास पुष्ट ट्रैवल दस्तावेज होने चाहिए, जो उनके पास नहीं थे। ऐसे अन्य अवैध घुसपैठियों की पहचान करने की कोशिशें भी जारी हैं।
स्त्रोत : Opindia
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