Thursday 30 September 2021
ମୁସଲମାନମାନଙ୍କ ଦ୍ବାରା ଜବରଦଖଲ
Sunday 26 September 2021
असम के दरांग में सिपाझार हिंसा के पीछे PFI का हात होने की आशंका
असम के दरांग में सिपाझार हिंसा के पीछे PFI का हात होने की आशंका
असम के सिपाझार में अतिक्रमण खाली कराने गई पुलिस पर भीड़ ने हमला कर दिया था, जिसमें कई पुलिसकर्मी घायल हो गए। अब मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने इस घटना के पीछे PFI (पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया) का हाथ होने की बात कही है। उन्होंने कहा कि PFI दरंग जिले के धौलपुर में ‘तीसरी ताकत’ के रूप में काम कर रहा था, जिसने अवैध अतिक्रमणकारियों को भड़काया। फिर उन्होंने अतिक्रमण खाली कराने गई सरकारी टीम पर हमला बोल दिया।
ये लोग वर्षों से सरकारी जमीन पर कब्ज़ा जमा कर बैठे हुए थे। गुरुवार (23 सितंबर, 2021) को हुए इस हमले में दो अतिक्रमणकारी भी मारे गए। मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने अनुसार, भीड़ को उकसाने और लोगों को जुटा कर इस घटना को अंजाम देने वाले 6 लोगों को चिह्नित किया गया है, जिसमें एक कॉलेज शिक्षक भी शामिल है। उन्होंने बताया कि इस घटना के 1 दिन पहले लोगों को भोजन देने के नाम पर PFI के लोगों ने इस क्षेत्र का दौरा किया था।
असम की सरकार ने इस सम्बन्ध में महत्वपूर्ण दस्तावेज केंद्र सरकार को भेजे हैं और माँग की है कि PFI पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगाया जाए। राज्य सरकार को ये भी जानकारी मिली है कि PFI के 6 लोगों ने पिछले 3 महीनों में अतिक्रमणकारियों से 28 लाख रुपयों की वसूली की है, जिसके बदले वादा किया गया कि वो अवैध कब्जे को खाली नहीं होने देंगे। जब वो ऐसा करने में नाकामयाब रहे तो उन्होंने भीड़ को उकसाया।
इस हमले में 9 पुलिसकर्मी घायल हो गए हैं। वहीं PFI ने इस मामले में उलटे सीएम सरमा को घुड़की देते हुए चुनौती दी है कि अगर उनके पास संगठन के विरुद्ध कोई भी सबूत है तो इसे सार्वजनिक कर के दिखाएँ। PFI ने कहा कि राज्य में उपचुनाव आने वाले हैं, इसीलिए जमीन खाली करने की प्रक्रिया को सांप्रदायिक रंग दिया जा रहा है और मुख्यमंत्री सरमा ‘खुला झूठ’ बोल रहे हैं। बदरुद्दीन अजमल की पार्टी AIUDF भी इस मामले में राज्य सरकार के खिलाफ खड़ी है।
AIUDF के एक प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल जगदीश मुखी से मिल कर माँग रखी कि जिन-जिन लोगों से जमीनें खाली कराई गई हैं, उनमें प्रत्येक को खेती के लिए 6-6 बीघा और घर के लिए एक-एक बीघा जमीन दी जाए। सीएम सरमा ने कहा कि सिपाझार, लुमडिंग और बरछाला की जमीनों पर ढिंग, रूपोहीहाट और लाहौरीघाट के लोगों द्वारा एक साजिश के तहत कब्ज़ा किया गया। उन्होंने कहा कि ऐसा प्रत्येक 5 वर्षों में किया जाता है, ताकि वहाँ की डेमोग्राफी बदले।
सीएम सरमा ने ख़ुफ़िया एजेंसियों को मिली जानकारी के आधार पर ये बातें कहीं। ये सूचना भी मिली है कि कॉलेज में एक लेक्चर दिया गया था, ताकि विवाद को बढ़ाया जा सके। उन्होंने पूछा कि जहाँ 60 परिवारों को हटाना था, वहाँ 10,000 लोग कैसे जमा हो गए? CAA विरोधी आंदोलन की जाँच के दौरान PFI के प्रदेश अध्यक्ष को गिरफ्तार भी किया गया था, लेकिन 3 महीने बाद उन्हें अदालत से जमानत मिल गई।
उन्होंने कहा कि PFI के विरुद्ध जो भी कार्रवाई की जा सकती है, असम सरकार उसमें लगी हुई है। केंद्र को डोजियर भेजा जाना उसी का हिस्सा है। राज्य सरकार ने अवैध कब्जा खाली कराने से पहले ‘ऑल असम माइनॉरिटीज स्टूडेंट्स यूनियन (AAMSU)’ के साथ 2 बार बैठक की थी। दरंग के डिप्टी कमिश्नर और AAMUSU के लोग दो बार वहाँ साथ गए थे। उन्होंने कहा कि इनमें से अधिकतर लोगों के जमीनें हैं, वो भूमिहीन नहीं हैं।
साथ ही उन्होंने वादा किया कि अगर इनमें से कोई भूमिहीन है तो उसे सरकारी योजना के तहत दो एकड़ जमीन मिलेगी, बशर्ते राज्ये के किसी हिस्से में उनके पास पहले से जमीन नहीं होनी चाहिए। मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने कहा कि इन लोगों को विश्वास में लेकर ही कब्ज़ा खाली कराने का कार्य शुरू हुआ था। कॉन्ग्रेस विधायकों के प्रतिनिधिमंडल को उन्होंने उन्होंने ये बात समझाई है, लेकिन उसके बाद हंगामा खड़ा कर दिया गया।
बता दें कि असम में 26 सत्रों (वैष्णव मठों) की 5548 बीघा जमीन को घुसपैठियों ने कब्ज़ा रखा है। एक RTI से तो यहाँ तक पता चला था कि असम का 4 लाख हेक्टेयर जंगल क्षेत्र अतिक्रमण की जद में है। ये राज्य के कुल जंगल क्षेत्रों का 22% एरिया है। एक सरकारी समिति ने पाया था कि असम के 33 जिलों में से 15 में बांग्लादेशी घुसपैठिए हावी हैं। इन अतिक्रमणकारियों ने अवैध गाँव के गाँव बसा लिए हैं।
संदर्भ : OpIndia
Monday 21 June 2021
फर्जी दस्तावेज, नौकरी, महिलाओं की तस्करी: भारत में घुसपैठियों को लाने वाले 4 रोहिंग्या को UP की ATS ने पकड़ा
उत्तर प्रदेश एटीएस ने अवैध रूप से भारत में बांग्लादेशियों की घुसपैठ कराने के मामले में 4 रोहिंग्या को गिरफ्तार किया है। पुलिस का कहना है कि उन्हें इस गिरोह को लेकर लंबे समय से सूचना मिल रही थी। जिसके बाद उन्होंने निगरानी रखनी शुरू की और उन्हें मेरठ में रहने वाले हाफिज शफीक नाम के व्यक्ति और उसके साथियों का पता चला। पुलिस ने इनकी गिरफ्तारी के बाद इन्हें कोर्ट में पेश कर अपनी रिमांड में ले लिया है। अब पूछताछ की जा रही है।
उत्तर प्रदेश के एडीजी प्रशांत कुमार का कहना है, “हाफिज शफीक मेरठ में एक गिरोह चला रहा था, जो भारत में लाए गए रोहिंग्याओं के आधार, वोटर आईडी, पासपोर्ट आदि बनवाते थे। इन्होंने कई महिला रोहिंग्या की तस्करी कर विदेशों में भी पहुँचाया है। हाफिज शफीक सहित 4 लोगों को गिरफ़्तार किया गया है।”
प्राप्त जानकारी के अनुसार, गिरफ्तार हुए चारों आरोपितों की पहचान हाफिज शफीक, अजीजुर्रहमान, मुफीजुर्रहमान और मोहम्मद इस्माइल के तौर पर हुई है। इनमें से अजीरुर्रहमान और मुफीजुर्रहमान म्यांमार के रखाइन प्रांत के हैं। हफीज, म्यांमार के मुशीदम का निवासी है और इस्माइल म्यांमार के टमरू का रहने वाला है। ये लोग अभी मेरठ के अलीपुर में रहते थे।
18 जून को हफीज और मुफीजुर्रहमान को मेरठ के अलीगढ़ से पकड़ा गया। वहीं अजीजुर्रहमान और मोहम्मद इस्माइल को बुलंदशहर के खुर्जा से एटीएस टीम ने गिरफ्तार किया। इन सभी पर आरोप है कि ये रोहिंग्या और बांग्लादेशियों को भारत की सीमा में अवैध रूप से लाते थे। बाद में उनके फर्जी दस्तावेज तैयार करवाकर उन्हें संस्थानों में नौकरी दिलाते थे। साथ ही उनकी आमदनी के बड़े हिस्से को बतौर वसूली लेते थे।
पुलिस का कहना है कि ये गिरोह भारत में जिन लोगों की एंट्री करवाता था उनमें से कई विभिन्न प्रकार की आपराधिक एवं देश विरोधी गतिविधियों में संलिप्त हैं। पड़ताल में पता चला है कि इन लोगों ने न केवल घुसपैठियों के फर्जी दस्तावेज बनवाए, बल्कि उनके लिए बाहर की विदेश यात्राएँ भी करवाई। इसके अलावा ये लोग रोहिंग्या महिलाओं की तस्करी में भी शामिल थे। इसके लिए इन्हीं फर्जी दस्तावेजों को प्रयोग में लाया जाता था।
पुलिस ने इनके पास से 3 आधार कार्ड, 3 मोबाइल फोन, बर्मा का 1 पहचान पत्र, एक फर्जी आधार, 2 पासपोर्ट की फोटोकॉपी, 1 लैपटॉप, 1 पेनड्राइव, कुछ विदेशी मुद्रा और अन्य रोहिंग्या प्रवासियों के लिए बनवाए गए भारतीय पासपोर्टों में वोटर आईडी व भारतीय जन्म प्रमाण पत्र भी बरामद किए गए है। चारों आरोपितों की गिरफ्तारी के बाद इन्हें कोर्ट में पेश करके रिमांड में भेज दिया गया है। पता लगाया जा रहा है कि इनके साथ और कौन-कौन इस काम में संलिप्त हैं।
संदर्भ : OpIndia
Sunday 11 April 2021
ରୋହିଙ୍ଗ୍ୟାଙ୍କ ପ୍ରତ୍ୟର୍ପଣ ପାଇଁ ସୁପ୍ରିମକୋର୍ଟଙ୍କ ଅନୁମତି http://epaper.prameyanews.com/m/501217/6
ରୋହିଙ୍ଗ୍ୟାଙ୍କ ପ୍ରତ୍ୟର୍ପଣ ପାଇଁ ସୁପ୍ରିମକୋର୍ଟଙ୍କ ଅନୁମତି
http://epaper.prameyanews.com/ଅଲକାଇଦା ଅନୁପ୍ରାଣିତ ଆତଙ୍କବାଦୀ ସଂଗଠନ କଶ୍ମୀରରୁ ମୂଳପୋଛ
ଅଲକାଇଦା ଅନୁପ୍ରାଣିତ ଆତଙ୍କବାଦୀ ସଂଗଠନ କଶ୍ମୀରରୁ ମୂଳପୋଛ
https://vskodisha.com/7-terrorThursday 8 April 2021
अवैध रोहिंग्या घुसपैठियों को राहत देने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार, कहा- नियत प्रक्रिया के तहत होगा डिपोर्टेशन
अवैध रोहिंग्या घुसपैठियों को राहत देने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार, कहा- नियत प्रक्रिया के तहत होगा
जम्मू में अवैध रोहिंग्या प्रवासियों के डिटेन्शन और उन्हें वापस म्याँमार भेजने के निर्णय के विरुद्ध दायर की गई याचिका में अंतरिम आदेश पारित करने से इनकार कर दिया है। यह याचिका एडवोकेट प्रशांत भूषण द्वारा दाखिल की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मुद्दे पर अवैध रोहिंग्याओं के पक्ष में अंतरिम राहत प्रदान करना संभव नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा कि अवैध प्रवासियों के डिपोर्टेशन से संबंधित पूरी प्रक्रिया का पालन करने के बाद ही रोहिंग्याओं को म्याँमार भेजा जाए।
चीफ जस्टिस एसए बोबड़े, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामासुब्रमनियम की बेंच ने मोहम्मद सलीमुल्लाह की याचिका पर निर्णय देते हुए कहा कि कोर्ट जम्मू में अवैध प्रवासियों के लिए बने सेंटर्स में डिटेन किए गए रोहिंग्या प्रवासियों को छोड़ने का निर्णय नहीं दे सकता बल्कि नियत प्रक्रिया के अनुसार उनके डिपोर्टेशन की अनुमति देता है। अवैध रोहिंग्या प्रवासियों को बचाने की याचिका में सलीमुल्लाह की ओर से प्रशांत भूषण सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए।
23, मार्च को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान रोहिंग्याओं की म्याँमार में स्थिति से संबंधित इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (ICJ) के निर्णय का हवाला दिया था जबकि यह तथ्य सर्वविदित है कि आईसीजे का निर्णय आमतौर पर भारतीय न्याय व्यवस्था पर कोई प्रभाव नहीं डाल सकता है।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि रोहिंग्याओं का डिपोर्टेशन अनुच्छेद 21 का उल्लंघन नहीं :
भारत सरकार का पक्ष रखते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि डिपोर्टेशन कानून के द्वारा निर्मित नियत प्रक्रिया के अनुसार ही होगा अतः यह संविधान के अनुच्छेद 21 का किसी भी प्रकार से उल्लंघन नहीं करेगा। मेहता ने यह भी कहा कि रोहिंग्याओं के लिए ‘रिफ़्यूजी’ के स्थान पर ‘अवैध प्रवासी’ शब्द उपयोग किया जाना चाहिए।
जम्मू-कश्मीर सरकार की ओर से हरीश साल्वे इस केस में शामिल हुए। उन्होंने कहा कि चूँकि भारत ने अवैध प्रवासियों से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय संधि पर हस्ताक्षर नहीं किया है अतः ‘non-refoulment (यह अवैध प्रवासियों को उनके मूल स्थान पर वापस भेजने से संबंधित है)’ का सिद्धांत भारत पर लागू नहीं होता है।
चीफ जस्टिस ने कहा कि कोर्ट यह मानता है कि म्याँमार में रोहिंग्याओं की स्थिति अच्छी नहीं है लेकिन इस मुद्दे पर कुछ भी करना न्यायालय के अधिकार क्षेत्र से बाहर है। उन्होंने यह भी कहा कि म्याँमार में अवैध रोहिंग्या प्रवासियों के साथ म्याँमार में क्या होगा, उसे सुप्रीम कोर्ट नहीं रोक सकता है।
https://hindi.opindia.com/national/sc-refuse-to-pass-an-interim-relief-order-on-deportation-of-illegal-rohingyas/
Saturday 27 March 2021
ଭାରତ ବେଆଇନ ଶରଣାର୍ଥୀଙ୍କ ରାଜଧାନୀ ହୋଇ ପାରିବ ନାହିଁ
ଭାରତ ବେଆଇନ ଶରଣାର୍ଥୀଙ୍କ ରାଜଧାନୀ ହୋଇ ପାରିବ ନାହିଁ
http://epaper.prameyanews.com/Tuesday 16 March 2021
रोहिंग्या को तुरंत रिहा करें, प्रत्यर्पित करने से केंद्र सरकार को रोकें’: प्रशांत भूषण की सुप्रीम कोर्ट में याचिका
सुप्रीम कोर्ट से जम्मू-कश्मीर में हिरासत में लिए गए रोहिंग्या को तुरंत रिहा करने और उन्हें प्रत्यर्पित करने के आदेश को लागू करने से केंद्र सरकार को रोकने की गुहार लगाई गई है। इस संबंध में पिछले साल कोर्ट की अवमानना मामले में दोषी पाए गए वकील प्रशांत भूषण के माध्यम से गुरुवार (मार्च 11, 2021) को एक याचिका दायर की गई। इस याचिका में जम्मू में हिरासत में लिए गए अवैध रोहिंग्या प्रवासियों को रिहा करने के लिए तत्काल हस्तक्षेप की माँग की गई है। कथित तौर पर यह याचिका रोहिंग्या मोहम्मद सलीमुल्ला ने दायर की है और एडवोकेट चेरिल डीसूजा (Cheryl Dsouza) ने इसे तैयार किया है।
रिपोर्ट्स के अनुसार, बताया गया है कि यह जनहित याचिका भारत में रह रहे अवैध प्रवासियों (याचिका की भाषा में शरणार्थी) को प्रत्यर्पित करने से बचाने के लिए दायर की गई है। यह भी कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 21 के साथ ही अनुच्छेद 51 (सी) के तहत प्राप्त अधिकारों की रक्षा के लिए यह याचिका दाखिल की गई है।
याचिका में सुप्रीम कोर्ट से गुजारिश की गई है कि वह संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (UNHCR) को इस मामले में हस्तक्षेप करने के निर्देश जारी करें। साथ ही शिविरों में रखे गए रोहिंग्या की सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने की माँग की गई है।
याचिका में कहा गया है कि एक सरकारी सर्कुलर की वजह से रोहिंग्या खतरे का सामना करना पड़ रहा है। यह सर्कुलर अवैध रोहिंग्या प्रवासियों की पहचान का निर्देश अधिकारियों को निर्देश देता है। शीर्ष अदालत में लंबित एक मामले में हस्तक्षेप अर्जी दायर कर गृह मंत्रालय को निर्देश देने का आग्रह किया है कि वह अनौपचारिक शिविरों में रह रहे रोहिंग्याओं के लिए विदेशी क्षेत्रीय पंजीकरण कार्यालय (एफआरआरओ) के जरिए तीव्र गति से शरणार्थी पहचान-पत्र जारी करें।
याचिका कहती है कि भारत में शरणार्थियों के लिए कानून न होने से रोहिंग्याओं को अवैध प्रवासी माना जाता है, जिन्हें फॉरेनर्स एक्ट 1946 और फॉरेनर्स ऑर्डर 1948 के तहत कभी भी भेजा जा सकता है। इसमें यह भी कहा गया है कि मुस्लिम पहचान की वजह से सरकार रोहिंग्या के साथ भेदभाव करती है।
2017 में दायर हुई थी याचिका
बता दें कि इसी मामले में एक आवेदन साल 2017 में दायर किया गया था। उसमें रोहिंग्या सहित अन्य शरणार्थियों के निर्वासन के खिलाफ अधिकार की सुरक्षा की माँग की गई थी। याचिका में कहा गया था कि सरकार रोहिंग्या लोगों म्यांमार प्रत्यर्पित करने का प्रस्ताव देकर उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने में विफल रही है।
उल्लेखनीय है कि जम्मू-कश्मीर में रह रहे अवैध प्रवासियों की पहचान करने के लिए चल रही कवायद के तहत, कई रोहिंग्याओं को विदेशी अधिनियम की धारा 3(2) ई के तहत होल्डिंग सेंटर भेजा गया था। इनके पास पासपोर्ट अधिनियम की धारा 3 के तहत आवश्यकतानुसार वैध यात्रा के दस्तावेज नहीं थे।
संदर्भ : OpIndia
Wednesday 10 March 2021
मौलवियों, NGO, नेताओं की मिलीभगत से जम्मू में बसाए गए रोहिंग्या: डेमोग्राफी बदलने की साजिश, मदरसों-मस्जिदों में पनाह
‘दैनिक जागरण’ की एक विस्तृत खबर के अनुसार, इस साजिश में राजनीतिक लोगों के साथ-साथ कई NGO भी शामिल हैं। सुरक्षा एजेंसियों की नाक के नीचे इतना सब कुछ अंजाम दिया गया। बांग्लादेश के रास्ते रोहिंग्या मुस्लिमों की खेप कोलकाता पहुँचती रही है, जबकि अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मिजोरम और नागालैंड की सीमाएँ सीधे म्यांमार से लगती हैं। पता चला है कि उन्हें मालदा लाकर वहाँ से जम्मू भेजा जा रहा था।
इन सब चीजों के तार दिल्ली से भी जुड़ते हैं, जहाँ संयुक्त राष्ट्र से सम्बद्ध संस्था द्वारा इन रोहिंग्या मुस्लिमों का पंजीकरण किया जाता है। ये संस्थाएँ ‘शरणार्थियों की मदद’ के नाम पर दिल्ली से लेकर कोलकाता तक सक्रिय रहती हैं। इन तत्वों द्वारा रोहिंग्या मुस्लिमों को विश्वास दिलाया जाता है कि जम्मू कश्मीर एक मुस्लिम बहुल इलाका है, जहाँ उन्हें कोई दिक्कत नहीं आएगी। वहाँ उन्हें इस्लाम प्रैक्टिस करने से कोई नहीं रोकेगा।
ये NGO और इस्लामी संस्थाएँ रोहिंग्या मुस्लिमों को जम्मू पहुँचाती थीं और उनकी यात्रा से लेकर रहने और खाने-पीने तक की व्यवस्था का पूरा जिम्मा उठाती थीं। जम्मू, सांबा और बाड़ी ब्राह्मणा में इनके लोग पहले से मौजूद रहते थे, जो मस्जिदों और मदरसों में इनके रहने का बंदोबस्त करते थे। फिर उन्हें झुग्गियों में बसा दिया जाता था। खास बात ये है कि उन्हें उन्हीं क्षेत्रों में बसाया जा रहा था, जहाँ मुस्लिमों की जनसंख्या कम है।साथ ही उन्हें जम्मू कश्मीर में चल रहे ‘जिहाद’ और म्यांमार में ‘बौद्धों के अत्याचार’ को जोड़ कर और कट्टर बनाया जाता है। उनसे कट्टर बातें कर के जिहादी तत्वों के लिए काम करने के लिए तैयार किया जाता था। पाकिस्तान के साथ जम्मू कश्मीर के सटे होने का उन्हें दोहरा फायदा मिलता था। उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल और बांग्लादेश के मुस्लिम जम्मू में पहले से बसे हुए हैं, इसीलिए किसी को शक नहीं होता था।
जब भी इस पर कोई आवाज़ उठती थी तो इनकी मददगार संस्थाएँ उन्हें पीड़ित बताते हुए अपने खेल शुरू कर देती थीं। नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी, अवामी इत्तेहाद पार्टी और कॉन्ग्रेस ने रोहिंग्या मुस्लिमों को अपने वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया। भले ही उन्हें वोट का अधिकार न हो, लेकिन उन्हें संरक्षण देकर मुस्लिम समाज को खुश किया जाता था और उनके खिलाफ कार्रवाई न कर के तुष्टिकरण की राजनीति की जाती थी।
जम्मू कश्मीर की अंतिम मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने अपने कार्यकाल में कहा था कि रोहिंग्या मुस्लिमों को लेकर केंद्र सरकार ही निर्णय ले सकती है। जमात-ए-इस्लामी कश्मीर जैसे कई संगठन इनके लिए काम कर रहे हैं और उनके नाम पर जुलूस निकालते रहे हैं, क्षेत्र में तनाव का माहौल बनाते रहे हैं। ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के एक गुट के अध्यक्ष मीरवाइज मौलवी उमर फारूक ने रोहिंग्या के लिए कश्मीर में सांत्वना दिवस का भी आयोजन किया था।
कुछ वर्षों पहले म्यांमारी आतंकी छोटा बर्मी को सुरक्षाबलों ने एक मुठभेड़ में मार गिराया था। पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी ISI भी जम्मू कश्मीर के ‘जिहादियों’ और म्यांमार के ‘रोहिंग्याओं’ के बीच सेतु का काम कर रही है। कोलकाता के मौलवी भी उन्हें जम्मू पहुँचाने में मदद करते हैं। जम्मू कश्मीर में उन्हें रोजगार भी आसानी से मिल जाता है। कई रोहिंग्याओं का कहना है कि वो बिना किसी जाँच के ट्रेन से यहाँ आराम से पहुँच जाते हैं।
आँकड़े कहते हैं कि जम्मू-कश्मीर में कुल 13600 विदेशी नागरिक अवैध रूप से रह रहे हैं। जिनमें सबसे ज्यादा संख्या रोहिंग्याओं और बांग्लादेशियों की है। जम्मू के बेली चराना और सांबा में भी इनकी बड़ी संख्या है। ड्रग्स रैकेट और आतंकी हमलों में इनका नाम सामने आता रहता है। जम्मू के बठिंडी में रोहिंग्याओं की संख्या बहुत ज्यादा है। अब वो स्थानीय आबादी में मिल गए हैं, जिससे उनकी पहचान खासी मुश्किल हो रही है।
हाल ही में जम्मू-कश्मीर में 155 ऐसे रोहिंग्या मिले थे, जो म्यांमार में अपनी सज़ा से बच कर यहाँ रह रहे थे। उन सभी को ‘होल्डिंग सेंटर’ भेज दिया गया है। पुलिस ने फॉरेनर्स एक्ट के अनुच्छेद-3(2)e के तहत ये कार्रवाई की। साथ ही पासपोर्ट एक्ट के अनुच्छेद-3 के तहत प्रवासियों के पास पुष्ट ट्रैवल दस्तावेज होने चाहिए, जो उनके पास नहीं थे। ऐसे अन्य अवैध घुसपैठियों की पहचान करने की कोशिशें भी जारी हैं।
स्त्रोत : Opindia